Pahla Sex Trainer Teacher Ke Sath – रंडी से मिली मुझे चुदाई की कोचिंग


पहला सेक्स ट्रेनर टीचर के साथ किया मैंने. मेरे दोस्त और मैंने कभी सेक्स नहीं किया था तो हम नंगी किताबें पढ़ते देखते थे. किताब बेचने वाले ने हमें सेक्स करने के लिए चूत दिलवाई.

दोस्तो, मेरा नाम शेख़ ज़ुल्फ़िकार है, प्यार से और शार्ट में मुझे सब ज़ुल्फ़ी कहते हैं।
अभी मैं लखनऊ में रहता हूँ।

मैं पिछले 6 सालों से अन्तर्वासना का पाठक हूँ और अन्तर्वासना पर मैं अपनी पहली कहानी शेयर कर रहा हूँ.
कहानी मेरी आपबीती है अगर कहानी लिखने में कोई कमी रह जाये तो मुझे माफ़ कर देना।

आज मेरी उम्र 32 साल है, मैं लखनऊ से लगभग 100 किलोमीटर दूर बहराइच ज़िले के एक क़स्बे के अति प्रतिष्ठित परिवार से हूँ।

बचपन मेरा गाँव में बीता, और हाइस्कूल तक कि पढ़ाई भी घर रह कर हुई, इंटर के लिए मेरा एडमिशन लखनऊ के एक नामी कॉलेज में करा दिया गया।
मैं लखनऊ में अपने चचेरे भाई के साथ रहने लगा क्योंकि हम एक अमीर परिवार से थे तो मकान हमारे परिवार की ही प्रॉपर्टी था।

मेरे बड़े भाई ग्रेजुएशन में थे और उनका अफेयर चल रहा था, जो मुझे पता था.
मेरी ग़ैरमौजूदगी में वे अपने माल के साथ चोदम चोदी दूसरे तीसरे दिन कर लेते थे।

खैर एक साल तो इसी तरह गुज़र गया.

मैं 12वीं में जब पहुँचा तो हमारे 3 क्लास को 2 क्लास में कर दिया गया, इस तरह मेरी ज़िंदगी में सचिन की एंट्री हुई.
वह लखनऊ से ही था लेकिन सेक्स के बारे में उसे सारी जानकारी थी, तो वह मेरा गुरु बन गया।

उसने मुझे ब्लू फ़िल्म दिखाई और मेरे अंदर के दबे हुए वासना के शैतान को जगा दिया।

ब्लू फिल्मों को देखना, दिन में कई कई बार मुठ मारना, लड़कियों और औरतों को देखकर उनके बारे में गंदा गंदा सोचना और लंड सहलाना हमारा रोज़ का काम बन गया था।

फिर एक दिन अचानक मुझे अपने चचेरे भाई की लायी हुई एक किताब हाथ लग गयी जिसमें लड़कियों और औरतों की नंगी और चुदाई वाली फ़ोटो के साथ गंदी गंदी कहानियाँ थी.
गंदी से मतलब उसमें चूत लण्ड गांड और माँ बहन की गालियों की भरमार थी.
मतलब आज की अपनी अन्तर्वासना की कहानी जैसी कामुक और रसीली।

उस किताब की कहानियों को पढ़ कर हम दोनों को ही ब्लू फ़िल्मों से ज़्यादा मज़ा आया।
अब हम दोनों ने ठान लिया कि ऐसी ही मदमस्त किताबें पढ़ेंगे।

मगर ये किताबें मिलेंगी कहाँ … यह बड़ी दिक्कत थी.
किसी तरह सचिन यह पता लगा पाया कि ये किताबें रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन के आसपास मिलती हैं.
हम दोनों ने आसपास के स्टेशनों के पास बहुत ढूंढने कि कोशिश की मगर काम न बना, और डर भी था कि कोई देख न ले।

ख़ैर इसी तलाश में कुछ दिन बीते.
लेकिन यह पता चल गया कि कानपुर के सेंट्रल रेलवे स्टेशन के बाहर ये सब बिंदास बिकता है.

फिर क्या था हम दोनों इतवार को ट्रेन पकड़ कर चल दिये और बिना मेहनत के ही हम दोनों को किताबें मिल गयीं.
साथ ही दुकानदार से हमने तय किया कि अगले संडे हम इन्हें आधे दाम पर वापस करके नया माल ले जायेंगे।

किताबें लेकर हम सारा दिन कानपुर की मस्त चूचों और मटकती गांड को निहारते रहे और शाम लखनऊ वापस आकर अपने अपने घर चले आये, दोनों किताबें बदल बदल कर पढ़ते रहे।
करीब दो महीने तक यही सिलसिला चलता रहा, हम दोनों संडे को कानपुर जाते और पुरानी किताबें वापस करके नई ले आते।

ऐसा करते करते हमारा दुकानदार से एक दोस्ताना रिश्ता बन गया।

एक इतवार जब हम पहुंचे तो स्टेशन के बाहर ऐसी अश्लील सामान बेचने वाले गायब थे.
पुलिस ने सख्ती कर रखी थी.

हमने थोड़ा इधर उधर तलाश शुरू की ही थी तो वो दुकानदार अचानक से हमारे सामने आ गया और हमें वहाँ से थोड़ी दूर ले गया; फिर सारा मामला बताया।

ख़ैर उसने कहा कि तुम लोग यहीं पास में इन्तजार करो, मैं माल घर से लेकर आता हूँ.

वह चला गया फिर अचानक वापस आया और कहने लगा- मैं तुम लोगों पर भरोसा कर सकता हूं इसलिए तुम लोग भी मेरे साथ मेरे घर चलो.
हम थोड़ा डरे मगर उसके बार बार कहने पर साथ हो लिए।

उससे हम खुल चुके ही थे, तो साथ चलते उसने पूछा- अभी तक तुम दोनों बस यही सब देख पढ़ रहे हो या किसी को चोद भी चुके हो?
हम दोनों ने कह दिया कि अभी तक हमने किसी लड़की औरत को पूरी नंगी भी नहीं देखा है।

तब तक हम उसके घर पहुँच चुके थे.

उसने हमें बिठाया, पहले पानी पिलाया, फिर क़िताबों का ढेर लगा दिया कि छाँट लो।

हम किताबें छाँट रहे थे और वो हमसे कहने लगा- कब तक ऐसे काम चलाओगे, अब तो जवानी पूरा मज़ा लो. हाँ पैसे तो ख़र्च होंगे ही, अगर कहो तो मेरे पास इंतज़ाम है।

ये बातें हो ही रही थी कि तभी एक 38-40 साल की अच्छी सेहत वाली औरत कमरे में चाय और पकौड़ी लेकर हाज़िर हुई.
वह औरत उसी दुकानदार की बीवी थी.

साढ़े पांच इंच की हाइट वाली वो गदराए बदन की मालकिन थी.
उसका फिगर 36-34-36 होगा.

सांवली रंगत मगर मदमस्त नाक नक्श थे उसके!
होंठों पर गहरी रेड लिपिस्टिक लगाए थी.

हमारा दिल चाह रहा था कि बस लिपलॉक कर लें.
उसने बड़े गले की मैक्सी पहन रखी थी.

ख़ैर उसको इस तरह अचानक कमरे में देख हम दोनों काफ़ी शर्मिंदा महसूस करने लगे क्योंकि हमारे आसपास सैकड़ों नंगी लड़कियों औरतों वाली किताबें पड़ी थीं।

ख़ैर चाय पकौड़े की ट्रे उन्हीं किताबों पर रख कर उसने हमें चाय पकड़ाई और ख़ुद भी पीने लगी.

हमें नज़रें झुकाये देख वो पति से बोली- लगता है अभी इनका बचपना नहीं गया है अब आप इनका बचपना ख़त्म करवाओ, कब तक ये बच्चे रहेंगे।

ख़ैर हमने चाय ख़त्म की और वह र्तन उठा कर गांड हिलाती हुई अंदर चली गयी।

उसके जाते ही उसका पति बोला- तुम दोनों हज़ार रुपये ख़र्च करो तो चूत चुदवा दूँ।

उस दिन तो हमारे पास इतने रुपये नहीं थे.
ख़ैर अगले इतवार का तय हुआ तो रेट पर बात आ गयी.
वह हज़ार मांग रहा था और हम 500 देने को तैयार थे.

ख़ैर 600 रुपये पर सौदा तय हुआ और हम 100 रुपये एडवांस देकर और किताबें लेकर वापस आ गए।

पूरा हफ़्ता हम उसी औरत को सोच कर ही मुठ मारते रहे और यही चाहते रहे कि काश वही औरत हमें चोदने को मिल जाये.

उस औरत का नाम मैं बता दूँ, उसका नाम मानसी था.
हम उसे पूरी शिद्दत से चोदने के लिए तड़प रहे थे मगर क्योंकि वह दुकानदार की बीवी थी तो हम कह भी नहीं सकते थे।

खैर संडे का दिन भी आ गया.

हम दोनों अपनी पहली चुदाई को लेकर बहुत ही उत्तेजित थे और कुछ डर भी रहे थे पहले सेक्स को लेकर।
सज संवर कर, सेंट लगा कर हम कानपुर पहुंच गए.
सचिन दो पैकेट निरोध के ख़रीद के साथ ले गया था।

हम रेलवे स्टेशन के बाहर पहुँचे तो देखा अश्लीलता का बाज़ार फिर गर्म था, पुलिस को पैसा पहुंच चुका था और ठेले दुकानें सज चुकी थीं।

तब हम उस दुकानदार के पास पहुंचे और उसको उसकी किताबें वापस की तो उसने 10 मिनट रुकने को कहा क्योंकि उस टाइम कस्टमर थे।

ख़ैर जैसे ही वो फ्री हुआ, तुरंत सचिन ने सवाल शुरू किए कि कितनी देर में ले चलोगे, माल कैसा होगा.
तो उसने बस इतना ही कहा- तुम लोग थोड़ा धैर्य रखो, सब पता चल जाएगा और मायूसी भी नहीं होगी।

फिर वह हमें लेकर अपने घर पहुँचा तो हमें लगा कि शायद उसने रंडी को अपने घर ही बुला लिया है.
उसकी बीवी ने दरवाज़ा खोला.

क्या ग़ज़ब का माल लग रही थी वह … लाल रंग की साड़ी, बड़े गले का ऊँचा ब्लाउज नाभि से नीचे साड़ी, आधे बाहर निकले मम्मे, होंठों पर रेड लिपिस्टिक!

देखते ही हम दोनों के लण्ड ने पानी छोड़ दिया।

दुकानदार जिसका नाम रोहित था, उसने बीवी से कहा- अब ये दोनों तुम्हारी ज़िम्मेदारी हैं, मैं दुकान जा रहा हूँ, इन्हें कोई दिक्कत न हो।

उस वक़्त तक हम दोनों यही समझते रहे कि ये लेडी किसी और को ही हमसे चुदवायेगी।

वह हमें अंदर ले गयी और दरवाज़ा बन्द कर लिया, हमें बिठा कर पानी पिलाया फिर कोल्डड्रिंक लेकर आई जिसे हम तीनों ने पिया।

कोल्डड्रिंक ख़त्म होते ही वह बोली- अब आप लोग टॉयलेट जा कर फ्रेश हो लो.
तो हम दोनों ही बारी बारी से जाकर पेशाब कर आये।

फिर वो हमें अपने बेडरूम में ले गयी, हमें बेड पर बिठा कर सामने स्टूल पर बैठ गयी और हमारे हाथ अपने हाथों में लेकर बोली- जान, अब शर्म का चोला उतार भी दो और बिंदास मेरे दोस्त बन जाओ. वरना सोच लो मज़ा न कर पाओगे.

हम दोनों ने उसके हाथों को मसलना शुरु किया.
तो मानसी बोली- मेरे बच्चो, तुम्हारा पहली बार है तो आज पूरी छूट है। तुम लोग चाहो तो मुझे एक साथ चोद सकते हो.

उसके इतना कहते ही अचानक मेरे मुँह से निकला- क्या आप ही हमसे चुदोगी?
मेरे इतना कहते ही वह बोली- क्यों मैं जवान नहीं हूँ, या मैं पसंद नहीं तुम लोगों को?

यहाँ सचिन ने बात संभाली- नहीं भाभीजी, हम तो पिछले एक हफ्ते से आपको ही सोच कर मुठ मार रहे थे, तो आपको क्यों नहीं चोदेंगे।

इतना कह कर सचिन उससे लिपट गया.
पर मैं चुपचाप खड़ा रहा।

फिर उसने हमें तीन ऑप्शन दिए तो हमने तय किया कि पहले सचिन चुदाई करेगा और मैं कमरे के बाहर रहूँगा।

सचिन और मानसी कमरे में रुक गए और मैं कमरे के बाहर सोफ़े पर बैठ कर उनकी इनिंग्स खत्म होने का इंतज़ार करने लगा.

दोनों ने कमरे का दरवाज़ा लॉक नहीं किया था।
मैंने लंड पर कंडोम पहना हुआ था तो मैं दोनों को सोच कर लण्ड सहलाता रहा जिससे काफी पानी निकल गया.

करीब पौन घंटे बाद सचिन मानसी की चुदाई पूरी हुई तो सचिन ने आवाज़ दे कर कहा कि मैं रेडी हो जाऊं.
तो मैं फौरन टॉयलेट गया और कंडोम उतार कर पेशाब किया और वापस आ गया।

मैं दरवाज़ा खोलकर कमरे के अंदर गया तो मानसी साड़ी बांधने जा रही थी.

तो मैंने उसे कहा- क्यों फिजूल मेहनत कर रही हो? अभी उतारनी तो है ही!
मैंने सचिन को इशारा किया तो उसने इशारे में ही बताया कि मज़ा आ गया.

खैर सचिन नंगा ही कमरे से बाहर निकल गया.

और अब टाइम था मेरे मज़े लेने का!

मैंने उससे कहा- मेरे सारे कपड़े उतार दो!
उसने ऐसा ही किया.

फिर मैंने मानसी का पेटिकोट और ब्लाउज उतार फेंका.
वह मुस्कुराती रही.

मैंने उसके होंठों को चूसना शुरू किया, फिर उसकी नाभि चाटने लगा, ब्रा उतार कर उसके चूचे चूसने लगा.

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि उसके होंठ चूसूं, या नाभि या चूचे।
मैं बिल्कुल भेड़िया हो रहा था.

ऐसा करते करीब दस मिनट गुज़र गए.

अचानक मैंने उसकी पैंटी खींच कर अलग कर दी और उसके ऊपर चढ़ कर किस कर रहा था.
मेरा लण्ड पूरी तरह तन चुका था, मैं उसके ऊपर लेटा उसे किस करते हुए उसके पेट पर अपना लण्ड रगड़ रहा था.

कि अचानक मेरे लण्ड में सरसरी हुई और मैं उसके ऊपर ही उठ कर बैठ गया और मेरे लण्ड से जो फव्वारा छूटा तो सीधे मानसी के मुँह पर गिरा.
इतना होते ही मेरा लण्ड ढल गया.

यह देख मानसी पागलों की तरह हंसने लगी।

उसकी हँसी की आवाज़ सुन सचिन अंदर आ गया और हम दोनों की हालत समझ कर वह भी हँसने लगा.
मैं बहुत ही शर्मिंदा महसूस कर रहा था, मेरे आँसू तक निकल आये।

मेरी आँखों में आँसू देख सचिन की हंसी रुक गयी और उसने मुझे सीने से लगा लिया.
करीब 5 मिनट वह मुझे सीने से लगाये रहा।

तभी मानसी अपने चेहरे और सीने से मेरा वीर्य साफ़ करके उठी और एक झटके के साथ मुझे अपने गले से लगा लिया.
3-4 मिनट बाद मुझे उसने अलग करके मेरे होंठों को चूसना शुरू किया.

सेक्स ट्रेनिंग की शुरुआत में वह वही सब करती रही जो मैं उसके साथ कर रहा था।

थोड़ी देर में मैं भी उसका साथ देने लगा।
उसने मेरे होंठ चूसने के बाद मेरे निप्पल को अपनी ज़ुबान से चाटना शुरू किया, फिर मेरी नाभि को चाटा.
यानि वो सब उसने मेरे साथ किया जो मैंने उसके साथ किया था।

सेक्स ट्रेनर टीचर की मदद से अब मेरे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार हो चुका था।
मेरा लण्ड खड़ा होकर उसे सलामी दे रहा था।

अब मैं भी ख़ुद को सहज महसूस कर रहा था.

सचिन एक बार फिर अपना लण्ड अपने हाथ से पकड़ कर हिलाने लगा, तो मुझे उस पर गुस्सा आ गया.
मैंने उसे गाली देते हुए कहा- मादरचोद, तू अब इन्हें चोदने की सोचना भी मत, पहले मुझे खेल पूरा कर लेने दे।

मानसी मुस्कुराती हुई उठी और मेरा मुँह अपने चूचे पर दबाती हुई बोली- अब तुम जो चाहो मेरे जिस्म के साथ करो … मगर आहिस्ता आहिस्ता. तभी तुम कुछ कर पाओगे और तभी मज़ा ले पाओगे।

उसने बताया कि वह हम जैसे नये नवेले नौजवानों से ही चुदवाती है. हमारे जैसे जो नौजवान उसके पति से गंदी किताबें ख़रीदते हैं, और रेगुलर ख़रीदते हैं तो उसका पति उन्हें चुदाई का ऑफर करता है. अगर लड़के मान जाते हैं तो वो अपनी बीवी को उनसे चुदवा देता है.

इन सब बातों के साथ मैं उसके बदन और वह मेरे बदन से खेलती रही।

तभी इतने में सचिन ने पिचकारी छोड़ दी और फव्वारा फिर से मानसी के मुँह पर गिरा और कुछ बूंदें उसकी आंख में भी चली गयी.
तो वह सचिन को मां बहन की गाली देने लगी और उससे उसे चाट कर साफ करने की ज़िद की.

तबी मैंने ही उसके मुँह पर लगे वीर्य को चाट डाला.

अब वह मुझसे बोली- भोसड़ी के तू फिर बाहर ही निकालेगा या चूत भी चोदेगा?
मेरा मन अभी अपना लण्ड उसकी चूत में डालने का नहीं था.

फिर भी सचिन ने तुरंत मुझे कंडोम पहनाया और मानसी ने मुझे चूत में लण्ड डालने को कहा.

मैं अनाड़ी होने की वजह से खुद ठीक से नहीं डाल पा रहा था तो सचिन ने मेरा लण्ड पकड़ कर उसकी चूत में डालने की जैसे ही कोशिश की, मानसी ने सचिन को ‘बहनचोद’ कहते हुए एक लात मार दी.

मानसी ने मुझे ख़ुद चूत में लण्ड डालने के लिए गाइड किया।

ख़ैर मुझे चूत में लण्ड डालने में मुझे कामयाबी मिल ही गयी तो मानसी ने मुझे लेटे लेटे ही अपनी बाहों में जकड़ कर किस करना शुरू कर दिया.
फिर उसने मुझसे धीरे धीरे धक्के देने को कहा.

मैंने जैसे ही दो धक्के लगाए तो मैंने तूफानी रफ़्तार पकड़ना चाही, वह मेरी मंशा समझ गयी क्योंकि वह एक एक्सपर्ट खिलाड़ी थी.
वह नहीं चाहती थी कि मेरा जल्दी पानी छूटे.

तो उसने फौरन मुझे बाहों में कस कर पलटी मार ली.
अब मैं नीचे और वह मेरे ऊपर थी.

फिर उसने बहुत ही धीरे धीरे अपनी गांड को उचकाना शुरू किया.
इस दौरान हम लागातार एक दूसरे को किस करते रहे.

लगभग 3 मिनट बाद मैं और वह दोनों एक साथ झड़ गए।

कुछ देर हम दोनों एक दूसरे से चिपके पड़े रहे, फिर अलग हुए.
तो उसने मेरा कंडोम उतार कर लण्ड को साफ किया.

अब सचिन बाबू का लण्ड फिर तैयार था.
मगर मानसी ने अपनी चूत या गांड में लेने से मना कर दिया.

बहुत रिक्वेस्ट पर वह अपने हाथ से ही उसके लण्ड को ठंडा करने पर राज़ी हुई।

इन सब कार्यक्रम में तीन घंटे लग गए थे।

तब उसने हम दोनों को फटाफट नहाकर कपड़े पहनने को कहा और अपना मोबाइल निकाल कर पति से कुछ बात की.
जब हम नहाकर निकले तो वह खुद फ्रेश होने गयी.

तब तक उसका पति पूरी-सब्ज़ी ले कर आ गया.

हम चारों साथ खाना खा रहे थे तो सचिन और हमने उन दोनों से हर इतवार चुदाई की बात की.
वे दोनों तो तैयार थे पर मसला पेमेंट को लेकर था.
हम बस 500 ही देना चाहते थे.

ख़ैर कुछ देर मान मनव्वल के बाद वे दोनों राज़ी हो गए।

मगर उसके पति ने ये शर्त भी रखी कि हम अपने और दोस्तों को भी लाएंगे, और उनका एक का रेट 500 रुपये होगा।

तो मैंने भी कहा- कुछ नया माल भी ट्राई कराते रहना!
यह सुनकर मानसी हँसती हुई बोली- भोसड़ी के … पहले उग तो लो।

उसके बाद हमारा हर इतवार का रूटीन बन गया.
लगभग हर रविवार हम अपने किसी न किसी नए दोस्त को भी ले जाते रहे.
कई बार तो हमने उनके पैसों से ही मज़े किये।

तो दोस्तो, यह थी मेरी पहली चुदाई की कहानी, जिसमें एक रंडी ने अपनी समझदारी से मुझे न सिर्फ़ चोदना सिखाया बल्कि मुझे अहसास-ए-कमतरी का शिकार होने से भी बचाया।
मैं आज भी उसका एहसानमंद हूँ।

यह मेरी पहली कहानी थी तो ज़ाहिर है काफ़ी कमियाँ भी होंगी.
तो उन्हें अनदेखा करके मुझे मेरे ईमेल पर मेल कर यह ज़रूर बताइएगा कि आपको मेरी सेक्स ट्रेनर टीचर कहानी कैसी लगी।
ताकि मेरा हौसला बढ़ सके और मैं अपने तमाम चुदाई के अनुभव आपसे अन्तर्वासना कहानी के माध्यम से आप तक पहुँचा सकूँ।
[email protected]

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